Sunday, 3 November 2019

क्या फ़्रांस की तर्ज़ पर भारत को भी "राइट टू बी फ़र्गॉटेन" क़ानून लाना चाहिए?

सबसे पहले आपको धन्यवाद कि आपने इतने अच्छे विषय पर लिखने के लिए आमंत्रित किया! आधार कार्ड के प्रणेता नंदन नीलकेणी ने एक बार कहा था कि Data is the new oil मतलब सूचना ही नया तेल है। जैसे तेल एक कीमती संसाधन है जिससे कई उत्पाद बनते है ठीक उसी तरह डेटा के बहुआयामी उपयोग होते हैं।
भुला दिए जाने का अधिकार :
फ़्रांस में अभी गूगल यूरोपीय संघ की अदालत में एक केस चल रहा है जहाँ इंटरनेट पर आपके अतीत को भुला देना या आपके उन कन्टेंट को हटा देने की बात हो रही है जिससे आपको आपत्ति हो। [1]
इस पर मेरे विचार बंटे हुए हैं। इस right to be forgotton के अच्छे और बुरे दोनों ही पहलू हैं।
क्यों ऐसा कानून होना चाहिए?
  • एक उदाहरण से समझते हैं। मानिये कोई महिला है। हो सकता है उसका कुछ बुरा इतिहास रहा हो या प्रेमी/बॉयफ्रेंड ने धोखा दे दिया। उसके कुछ ऐसे आपत्तिजनक कंटेंट हो जो इंटरनेट पर वायरल हो गए। अब इस केस में महिला के पास अधिकार होना चाहिए कि वो उस इंटरनेट कंपनी से कहे कि वो कंटेंट हमेशा के लिए हटा दिया जाए ताकि वो बाकी ज़िन्दगी चैन से जी पाए। ऐसे रिवेंज पोर्न के मामले होते है केवल सुनने में काम आते है। ये ज़रूरी है और तकनीक से संभव है तो ज़रूर होना चाहिए।
  • एक और उदाहरण लीजिये की कोई व्यक्ति किसी जुर्म के लिए जेल गया। सज़ा काट ली बाहर आया। पर उंस जुर्म का कलंक हो सकता है उसके माथे पर हमेशा लगा रहेगा। ट्रायल के दौरान मीडिया में जो भी कच्चा पक्का कंटेंट होगा वो भी लोग सर्च करेंगे और उसके बारे में राय बनाएंगे। उसे नौकरी मिलना कितना मुश्किल होगा क्योंकि लोग उसके अतीत को देखकर वर्तमान पर सवाल उठाएंगे। यह तो गलत है। जेल में सज़ा काट लेने के बाद उसे फिर से नई जिंदगी जीने का अधिकार मिलना चाहिए।
  • एक और उदाहरण देखिये। आपने फ्लिपकार्ट और अमेज़ॉन या ब्रांड फैक्ट्री से कुछ खरीदा। अब इन ऑनलाइन कंपनियों के पास आपका कुछ डेटा रहता है। जैसे आपका ईमेल एड्रेस, आपके घर का/ऑफिस का पता, आपका फोन नंबर आदि। आपने आपका एकाउंट डिलीट कर दिया पर वो डेटा अमेज़ॉन के पास अब भी रहेगा जिसे वो किसी 3 पार्टी को बेच सकते हैं जो आपको जबरदस्ती के ईमेल मार्केटिंग वाले मेल भेजता रहेगा। हो सकता है किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ ये लग जाये तो इस ईमेल का गलत इस्तेमाल करे।
  • फ़ेसबुक की पाउट वाली फ़ोटो मासूम हो सकती है पर क्या जब आपने फेसबुक इस्तेमाल करना बंद कर दिया क्या तब भी फेसबुक को एयर अधिकार होना चाहिए कि वो ये डेटा आपमे पास रखे? इन सब कारणों से मुझे लगता है कि ये राइट टू बी फॉरगॉटन भारत मे भी होना चाहिए।
क्यों नही होना चाहिए?
  • ठीक है एक अपराधी ने सज़ा काट ली पर मानिये कि उसका मूड हुआ कि वो चुनाव लड़ना चाहता है। ज्यादा दूर मत जाइए बस इन दोनों का सोचिए।
कल के दिन अगर माल्या और मोदी कहें कि हमे चुनाव लड़ना है और देश का प्रधानमंत्री/वित्तमंत्री बनना है तो क्या लोगो को उनके अतीत को जानने का अधिकार नही होना चाहिये? बिल्कुल होना चाहिए ताकि वो सोच समझ कर एक फैसला ले सकें। इसलिए ऐसा कानून अगर भारत मे आ गया तो मुश्किल है।
  • इसमे टेक्निकल समस्या भी है। कोई भयंकर मुजरिम भाग कर किसी देश से भारत आ जाता है या भारत से भाग कर किसी और देश चला जाता है तो प्रश्न उठेगा कि वहाँ भले उसे सजा मिले या ना मिले पर अगर उस देश मे उसने डेटा मिटाने की रिक्वेस्ट की तो क्या यह सही होगा?
  • सरकारी फॉर्म भरते समय पासपोर्ट आदि बनाते समय भी यह पूछा जाता है कि क्या आवेदनकर्ता किसी आपराधिक घटनाओं में संगलग्न था/थी या नही? डिजिटल डेटा के भुला देने के कानून के बाद इस पर भी गाज गिरेगी। क्या सरकारी तंत्र इसके लिए तैयार होंगे। यहाँ तो जाति, धर्म और वैवाहिक स्टेटस तक भी सरकार को बताना पड़ता है।
  • डेटा लोकलाइजेशन मतलब किसी एक भू भाग में मिटाना और विश्व के अन्य भागों में रहने देना भी इसमे एक पेंच है जिसके लिए गूगल अभी EU कोर्ट में लड़ रही है। गूगल का कहना एक तरह से यह अभिव्यक्ति की आज़ादी की अवहेलना होगी। क्या इसे ठीक करना सही होगा?
एक बड़ा प्रश्न है कि डेटा पर अधिकार किसका हो? जिसने संचय किया या जिसे संबंधित वो डेटा है। जैसे कि मैं सड़क पर चल रहा हूँ । CCTV कैमरे लगे हैं है उन्होंने मेरे साथ ही एक अपराधी की तस्वीर भी ली। एक ही फ्रेम में हम दोनों हैं। में चाहता हूँ सरकार वो डिलीट करे पर उससे वो अपराधी का सबूत भी डिलीट हो जाएगा। सरकार को data fiduciary और data processor को बहुत अच्छे से परिभाषित करना पड़ेगा।
और भी कई ऐसी बाते है जो इस मामले को पेचीदा बना देती है। भारत सरकार इस पर एक ड्राफ्ट पर काम कर रही है जिसे Personal Data Protection Bill[2] कहा गया है। अभी इस पर काफी काम बाकी हैं।
अंत मे मेरे विचार Right to privacy के तहत ये भी हमारे मौलिक अधिकारों में गिना जा सकता है पर ये बिल right to privacy की रक्षा करने का काम करेगा जो कि बहुत पेचीदा है। मैं मानता हूं कि होना चाहिए पर इसके प्रतिकूल प्रभावों का निराकरण भी ज़रूरी है।
धन्यवाद।
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